गम भी हैं मज़बूरियां भी हैं
गम भी हैं
मज़बूरियां भी
हैं
जब मुझे ही सहना
है
मुझे ही करना
है
क्यों किसी को
अहसास कराऊँ
हँसते हँसते
लड़ता रहूँ
सब्र से जीता
रहूँ
खुदा की
इबादत करता रहूँ
ज़िंदगी से ज़द्दोज़हद का
यही तरीका बेहतर
समझता हूँ
यही तरीका बेहतर
समझता हूँ
डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
शायरी,सब्र,ज़िंदगी,गम,
02-02-02-2015
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