स्वप्न और यथार्थ
स्वप्न और यथार्थ
तर्क वितर्क में उलझे थे
स्वप्न का तर्क था
मनुष्य
स्वप्न नहीं देखेगा
तो आगे कैसे बढेगा
अपने आप में
सिमट कर रह जाएगा ?
यथार्थ ने उत्तर दिया
जब स्वप्न
पूरा नहीं होता
मनुष्य निराशा में
व्यथित होता
निरंतर असफलता से
हताश हो जाता है
स्वप्न मनुष्य को
भ्रम में रखते हैं
इच्छाओं के
चक्रव्यूह में फंसाते हैं
तर्क वितर्क सुन कर
कर्म चुप ना रह सका
तुरंत बोला
स्वप्न भी देखो
यथार्थ में भी जीओ
मुझे कभी ना भूलो
स्वयं पर विश्वास रखो
एक दिन ऐसा आयेगा
स्वप्न पूरा हो जाएगा
वही यथार्थ बन जाएगा
© डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
536-27-26--10-2014
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