न सूरज बूढ़ा
होता है
न चाँद बूढ़ा होता है
न हवा थमती हैं
न समंदर
मचलना छोड़ता है
सब वही करते हैं
जो उन्हें करना होता है
न चाँद बूढ़ा होता है
न हवा थमती हैं
न समंदर
मचलना छोड़ता है
सब वही करते हैं
जो उन्हें करना होता है
मनुष्य निरंतर
पथ से भटकता है
स्व्यं से अधिक
दूसरों पर दृष्टि रखता है
ईर्ष्या द्वेष के
जाल में उलझता है
स्वार्थ में जीता है
थक कर एक दिनसंसार से बेचैन ही
विदा लेता है
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
पथ से भटकता है
स्व्यं से अधिक
दूसरों पर दृष्टि रखता है
ईर्ष्या द्वेष के
जाल में उलझता है
स्वार्थ में जीता है
थक कर एक दिनसंसार से बेचैन ही
विदा लेता है
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
493-33-16--09-2014
ईर्ष्या,द्वेष,स्वार्थ,जीवन,बेचैन
सुंदर प्रस्तुति...
उत्तर देंहटाएंदिनांक 18/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
Bahut hi sunder rachna....
उत्तर देंहटाएंसच्चाई से रूबरू कराती कविता...लाजवाब
उत्तर देंहटाएंपासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
बहुत बढ़िया
उत्तर देंहटाएंलाजवाब
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