ना जाने
किस्मत को क्या हुआ
बैठे ठाले दीवानगी का
दौरा पड़ गया
खुशियों को जहाँ को
ग़मों के
समंदर में बदल दिया
किस्मत के लिए तो
खेल हो गया
मगर हमारे लिए
सब्र का
इम्तहान बन गया
हँसी को
अश्क़ों में बदल दिया
अब इंतज़ार में हैं
कब फिर किस्मत को
दीवानगी का दौरा पड़े
हालात
पहले जैसे हो जाएँ
ज़िंदगी फिर से
हँसते खेलते गुजरने लगे
© डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
463-03-03--09-2014
किस्मत.दीवानगी.ज़िंदगी,शायरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें