वो मुझे
खुद के अंदर
ढूंढती है
मैं उसे
ख़्वाबों में
देखता हूँ
वो मुझे
हकीकत में चाहती
है
मैं ख़्वाबों
को
ख्वाब समझता
हूँ
वो लहर है
साहिल की तलाश
में
भटकती रहती है
मैं समंदर हूँ
ना जाने
कितने जज़्बातों
को
दिल में दबाये
रखता हूँ
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
498-38-18--09-2014
शायरी,मोहब्बत,ख्वाब,ज़ज़्बात
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