कैक्टस पर कविता-प्रेरणास्त्रोत्र कैक्टस
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कैक्टस को सदा
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कैक्टस को सदा
उसके कांटो से तोला गया
सूरज के ताप में
रेगिस्तान की धूल में
भीषण आंधियों में
नाम मात्र की वर्षा में
जीवित रहने के
संघर्ष को कम आंका गया
रात में खिल कर
दिन की भीषण धूप में
मुरझा जाने से
पुष्पों की नयनाभिराम
सुंदरता को भी
सराहा नहीं गया
हिम्मत होंसले को
भूला गया
दुर्भाग्य कैक्टस का नहीं
लोगों के सोच का है
सदियों से कैक्टस
निर्बाध रूप से
लोगों के सोच की
परवाह किये बिना
मरुस्थल पर
राज करता रहा है
प्रेरणास्त्रोत्र बना रहा
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
485-25-14--09-2014
कैक्टस,हिम्मत,होंसला ,प्रेरणास्त्रोत्र,मरुस्थल,दुर्भाग्य
.प्रकृति,selected
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