कब सोचा था
लोगों से थक
कर
एकांत ढूंढना
पडेगा
एकांत से थक
कर
लोगों को ढूंढना
पडेगा
पता होता एकांत
भी
उतना ही काटता
है
जितना लोग काटते
हैं
तो बीच का रास्ता
निकाल लेता
कभी लोगों को
सहता
कभी एकांत में
रहता
ज़िन्दगी को कभी
पूनम
कभी अमावस समझ
लेता
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
442-20-02--08-2014
एकांत,अकेलापन,लोग,जीवन,ज़िंदगी
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