निरंतर
अत्याचार सहती
हूँ
पैरों तले रोंदी
जाती हूँ
समय समय पर
काटी जाती हूँ
फिर भी हिम्मत
से
जीती हूँ
ना घबराती हूँ
ना डरती हूँ
सदा हरी भरी
रहती हूँ
बगीचे की शोभा
बढ़ाती हूँ
कहने को नन्ही
दूब हूँ
पर मनुष्य को
भी
सीख देती हूँ
©
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
हिम्मत,जीवन,बगीचा,सीख,अत्याचार, दूब पर कविता
398-09-03--07-2014
बहुत ही प्रेरणादायक पंक्तिया...... धन्यवाद डॉक्टर साहब!
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