जब भी शहर के
पुराने पुल से गुजरता हूँ
लगता है
बचपन से बुढापे तक की
यात्रा कर रहा हूँ
पुल की जगह जगह से
टूटी रेलिंग
पैबंद लगी सड़क में
मुझे मेरा आज दिखने
लगता है
चेहरे पर बुढापे का दर्द
झलकने लगता है
दीवारों पर लगे
नयी पुरानी फिल्मों के
रंग बिरंगे पोस्टर
मुझे मेरे बचपन की
याद दिलाते हैं
मन में जिज्ञासा जगाते हैं
रात को चमकती हुयी
मरकरी लाइटें
मुझे अपनी जवानी के
मस्त दिनों में लौटाती हैं
मुझे किसी मशहूर गीत की
पंक्तियाँ गुनगाने को
मजबूर करती हैं
जब भी शहर के
पुराने पुल से गुजरता हूँ
लगता है
बचपन से बुढापे तक की
यात्रा कर रहा हूँ
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
बचपन,बुढ़ापा,जीवन
244-11--06--05-2014
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