गुमाँ था
जिनकी वफा पर
वो ही बेवफा निकले
जान देने की बातें
करते थे जो वो ही
कातिल-ऐ-दिल निकले
जिनकी वफा पर
वो ही बेवफा निकले
जान देने की बातें
करते थे जो वो ही
कातिल-ऐ-दिल निकले
समझा था रहनुमा जिन्हें
उन्होंने ही कर दिया
घर से बेघर हमें
अब किस पर यकीं
किस पर शक करें
हमें तो हमेशा
सफ़ेद लिबास में
काले दिल मिले
घर से बेघर हमें
अब किस पर यकीं
किस पर शक करें
हमें तो हमेशा
सफ़ेद लिबास में
काले दिल मिले
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
शायरी,नज़्म,वफ़ा,बेवफा, कातिल-ऐ-दिल
260-27--17--05-2014
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