अब स्वतंत्र
होना
चाहता हूँ
रिश्तों के अरण्य
से
माया मोह के
समुद्र से
इच्छाओं के जंजाल
से
बहते पानी सा
बहना
चाहता हूँ
उन्मुक्त जीना
चाहता हूँ
जीवन की टेढ़ी
मेढ़ी
पगडंडियों से
मुक्त होना चाहता
हूँ
शांती को लक्ष्य
बना कर
संतुष्टी के
पथ पर
चलना चाहता हूँ
निश्छल,निष्कपट,
निष्कलंक
माया मोह से
अनभिग्य
आया था संसार
में
वैसा ही जाना
चाहता हूँ
अब स्वतंत्र
होना
चाहता हूँ
डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
180-22--07--04-2014
निश्छल,निष्कपट,निष्कलंक,
माया मोह,
जीवन,जीवन मन्त्र
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