लोग रास्ते से
भटके हैं
बहस में अटके
हैं
यथार्थ से दूर
स्व्यं को श्रेष्ठ
सिद्ध करने में
उलझे हैं
अहम् की तुष्टिं
में फंसे हैं
17-17-13-01-2014
डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
अहम्.तुष्टि,पथ
भ्रष्ट ,बहस,श्रेष्ठ ,जीवन
"निरंतर",जो चलता रहे,पीछे को पीछे छोड़,नए सोच के साथ,बिना थके,आगे बढ़ता रहे,निरंतर कुछ नया करता रहे........... "सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग" रोग मुक्त रहो निरंतर चलते रहो.... (सर्वाधिकार सुरक्षित) किसी भी रचना से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मंतव्य नहीं है फिर भी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ )
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