अवसाद के क्षणों में
मनुष्य निशब्द हो जाता
स्वयं को असहाय पाता
चेहरे से
विषाद झाँकने लगता
अश्रुधारा अवसाद को
उजागर करती
विचारों से त्रस्त मन
पिंजरे में बंद पंछी सा
फडफडाने लगता
भविष्य की
अंधेरी गलियों का
कोना कोना छानने में
व्यस्त हो जाता
नकारात्मकता के
हर पहलु को समीप से
देखने लगता
पीड़ा ग्रस्त ह्रदय
असमंजित अवस्था में
केवल शान्ति चाहता
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
45-289-21-09-2013
अवसाद,दुःख,विषाद,जीवन,पीड़ा ,कष्ट
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
आज की विशेष बुलेटिन विश्व शांति दिवस .... ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।
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