आस्था विश्वास
अनिष्ट और भय के
मकड़ जाल में उलझा हूँ
एक का पल्ला पकड़ता हूँ
दूसरा अपनी ओर
खीचने लगता है
आस्था और विश्वास
मुझे मरने नहीं देते
अनिष्ट और भय
मुझे जीने नहीं देते
निरंतर असमंजस के
संसार में डुबकियां
लगाता रहता हूँ
ना खुल कर हँस पाता हूँ
ना खुल कर रो पाता हूँ
12-12-06-01-2013
आस्था,विश्वास,अनिष्ट,भय
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
बढिया रचना जिस पेज को ढूंढता आया रीडर से वो तो नही मिला
उत्तर देंहटाएंबहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
उत्तर देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।