दर्द के खामोश
समंदर को
बहुत शिद्दत से
सम्हाल कर
सीने में दबा रखा है
डरता हूँ
कहीं ज़ज्बात उफन कर
बाहर ना आ जाएँ
दर्द देने वालों चेहरों को
बेनकाब ना कर दे
दुनिया को
उनकी हकीकत से
रूबरू ना करा दे
मुंह दिखाने के
लायक ही ना छोड़े
© डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
949-67-15-12-2012
शायरी,मोहब्बत,ज़ज्बात
,दर्द ,
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