मैंने तो चाहा था
सवेरा बन कर ही जीऊँ
शाम कभी देखू ही नहीं
सपना तो पूरा नहीं हुआ
इतना अवश्य समझ गया
शाम देखे बिना सवेरे का
महत्व नहीं समझ पाता
जीवन का हर पहलु
जान नहीं पाता
जान नहीं पाता
जीवन के हर रूप को
दिखाने के पीछे
इश्वर के मंतव्य को
कभी समझ नहीं पाता
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
कभी समझ नहीं पाता
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
862-46-23-11-2012
जीवन,ज़िन्दगी,सवेरा,शाम,इश्वर,मंतव्य
शानदार लेखन,
उत्तर देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!
अच कहा ईश्वर का मंतव्य आज तक भला कौन समझ पाया है । सुंदर रचना
उत्तर देंहटाएंअव्यवस्था के प्रति असंतोष से उपजता आंदोलन