कभी कभी खुद से भी
नफरत होने लगती है
जो नहीं कहना चाहिए
कह देता हूँ
जो नहीं सुनना चाहिए
सुन लेता हूँ
दिल के हाथो कमज़ोर
हो जाता हूँ
खुद को बेबस पाता हूँ
सिला उम्मीद से
उलटा पाता हूँ
लोगों की नज़रों से
उतर जाता हूँ
अब सोच रहा हूँ
दिल की सुनना छोड़ दूं
दिमाग से काम लूं
चेहरे पर चेहरा चढ़ा लूं
हर बात को तोल कर बोलूँ
लोगों को खुश कर दूं
झूठा सुकून दे दूं
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
नफरत होने लगती है
जो नहीं कहना चाहिए
कह देता हूँ
जो नहीं सुनना चाहिए
सुन लेता हूँ
दिल के हाथो कमज़ोर
हो जाता हूँ
खुद को बेबस पाता हूँ
सिला उम्मीद से
उलटा पाता हूँ
लोगों की नज़रों से
उतर जाता हूँ
अब सोच रहा हूँ
दिल की सुनना छोड़ दूं
दिमाग से काम लूं
चेहरे पर चेहरा चढ़ा लूं
हर बात को तोल कर बोलूँ
लोगों को खुश कर दूं
झूठा सुकून दे दूं
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
17-07-2012
610-07-07-12
सुन्दर शब्दों का प्रयोग ..
उत्तर देंहटाएंमन की उथलपुथल को दर्शाती कविता
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
उत्तर देंहटाएंहाँ , लोग भी यही चाहते हैं !
उत्तर देंहटाएंशुभकामनायें आपको !