हँसते हुए चेहरे पर आज ये उदासी कैसी
महकाती थी ज़माने को खुशबू जिनकी
आज उन बहारों में ये खिजा की बू कैसी
दिल डूबता है देख कर ये खौफ का मंज़र
शहनाइयों के बीच ये मातमी धुन कैसी
नहीं आ रहा समझ मुस्कुराते लबों पर
आज खुले आम ग़मों की नुमाइश कैसी
ना दे खुदा किसी हसीं को किस्मत ऐसी
मंदिर में हो जाए कब्रिस्तान की खामोशी
मासूम पर खुदा की ये मेहरबानियाँ कैसी
ना मिले किसी दुश्मन को भी सज़ा ऐसी
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
10-05-2012
510-25-05-12
अच्छी रचना!
उत्तर देंहटाएंरविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
उत्तर देंहटाएंक्या बात है वाह!
उत्तर देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-935 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ