खुश हूँ कोई तो
जानने लगा है मुझको
ठीक से
पहचानने लगा है मुझको
जो भी कहता हूँ
ठीक से
पहचानने लगा है मुझको
जो भी कहता हूँ
ध्यान से सुनता है
चुप रहकर सर हिलाता है
हाँ में हाँ मिलाता है
शायद वो भी वही
चुप रहकर सर हिलाता है
हाँ में हाँ मिलाता है
शायद वो भी वही
सह रहा है
जो मैं सह रहा हूँ
वही भुगत रहा है
जो में भुगत रहा हूँ
वो चुप रहना सीख गया
मैं अब भी
जो मैं सह रहा हूँ
वही भुगत रहा है
जो में भुगत रहा हूँ
वो चुप रहना सीख गया
मैं अब भी
एक ही गीत गाता हूँ
अपने दुखो का रोना रोता हूँ
उनका बाज़ार लगाता हूँ
जानता हूँ
कोई खरीददार नहीं
अपने दुखो का रोना रोता हूँ
उनका बाज़ार लगाता हूँ
जानता हूँ
कोई खरीददार नहीं
मिलेगा
खुद का युद्ध
खुद को ही लड़ना पड़ता
खुद को ही चुप रह कर
खुद को ही चुप रह कर
सहना सीखना होगा
वो सहना सीख गया
मुझे सीखना बाकी है
इसी आशा मैं
उससे निरंतर मिलता हूँ
संगत में कुछ तो सीख
जाऊंगा
मन की कुंठाओं पर
एक दिन विजय
वो सहना सीख गया
मुझे सीखना बाकी है
इसी आशा मैं
उससे निरंतर मिलता हूँ
संगत में कुछ तो सीख
जाऊंगा
मन की कुंठाओं पर
एक दिन विजय
पा लूंगा
04-03-2012
291-26-03-12
मन की कुंठाओं पर
उत्तर देंहटाएंएक दिन विजय
पा लूंगा
आभार उत्कृष्ट रचना के लिए ..
बस जमाने से हो जाते हैं हम।
उत्तर देंहटाएंखुद का युद्ध
उत्तर देंहटाएंखुद को ही लड़ना पड़ता
खुद को ही चुप रह कर
सहना सीखना होगा
बहुत गहरी बात....सरल शब्दों में कविता के माध्यम से कह दी है आपने...बधाई स्वीकारें
नीरज
आपकी बात कोई सुन तो रहा हैं ...मान भी रहा हैं .....ये तो अच्छी बात हैं ना....आप अपने जीवन की छोटी छोटी बातों को यहाँ लिखते हैं सरल शब्दों में .....सच में कमाल हैं डॉ
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