शाम के धुंधलके में
मुरझाये चेहरे
नम आँखों से
दरवाज़ा खोला तो
वो सामने खड़े थे
यकीन नहीं आया
आँखों को मला
फिर से
देखा तो वो ही थे
चेहरा दमकने लगा
दिल की
धड़कन बढ़ने लगी
सांसें तेज़ हो गयी
जब से
नाराज़ हो कर गए
आज पहली बार आये थे
बहुत उम्मीदों से पूछा
कैसे हैं ?
अब फिर तो नहीं जायेंगे
दिल तो नहीं दुखाएँगे
वो धीरे से बोले
कुछ सामान रह गया था
वो लेने आया हूँ
अभी फ़ौरन लौट जाऊँगा
अब दिल का
सौदा नहीं करता
सुकून चाहता हूँ
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
12-02-2012
156-67-02-12
स्पष्ट...अब नहीं..
उत्तर देंहटाएंमुश्किल है...
उत्तर देंहटाएंफिर होगी आहट...
फिर बंधेगी उम्मीद...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
उत्तर देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
insan kya kya soch leta hae......
उत्तर देंहटाएंSUNDAR RACHNA
इस एहसास में सकूंन की चाहना सिर्फ कहने भर के लिए है. मनोदशा का भाव सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त है.
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