लगती है आग जब
पानी में
किनारा भी महफूज़
नहीं रहता
मोहब्बत की आग
जब जलाती है दिल को
कोई सहारा उसे बचा
नहीं पाता
यादें सोने नहीं देती
अकेलापन
तिल तिल कर मारने
लगता
आँखों से अश्कों की
बरसात नहीं रुकती
मिलने की ख्वाइश
मरने नहीं देती
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
© डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
08-02-2012
124-35-02-12
124-35-02-12
बहुत खूब सर...
उत्तर देंहटाएंभावपूर्ण रचना |
उत्तर देंहटाएंआशा
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति......
उत्तर देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
बेहतरीन काव्य बधाईयाँ जी
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