रेस्तरां के
कोने में
पडी मेज़
मेरी मुन्तजिर
थी
रेस्तरां में
कदम रखते ही
उम्मीद से मेरी
तरफ
देखने लगती
वो मेरे साथ
होंगी
मेज़ पर आ बैठेंगे
आँखों में आँखें
डाल
घंटों एक दूसरे
को
देखते रहेंगे
एक दूसरे की
साँसों में
खुशबू घोलेंगे
कई वादे करेंगे
दिल नहीं मानेगा
फिर भी दोबारा
मिलने के लिए
बिछड़ेंगे
उसे पता नहीं
अब वो दुनिया
से
कूच कर गए
जाते जाते अपना
पता भी नहीं
छोड़ गए
नहीं तो मेज
की
ख्वाइश
उन तक पहुंचा
देता
उसे ख्याल नहीं
था
मैं अपनी यादों
के
हँसी लम्हों
का
अहसास करने के
लिए
कौने में पडी
मेज़ को
देखने के लिए
रेस्तरां में
आता हूँ
डा.राजेंद्र
तेला,निरंतर
31-01-2012
89-89-01-12
बहुत बढ़िया!
उत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर!!!
उत्तर देंहटाएंबहूत खुब ..
उत्तर देंहटाएंMahendra Gupta to me
उत्तर देंहटाएंshow details 7:03 PM (12 minutes ago)
sundar rachna.aapki har racna ka fan hoo
आपकी हर कविता जिंदगी के करीब और शब्द अपने से लगते हैं ....
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