क्या फर्क पड़ता है ?
गर मेरे चेहरे पर
तुम्हारा
नाम नहीं पढता कोई
मेरे दिल में तुम्हारी
तस्वीर नहीं देखता कोई
मेरे जहन में बसे तुम्हारे
ख्याल को
समझता नहीं कोई
मेरी हर साँस से
जुडी तुम्हारी साँस का
अहसास किसी को नहीं
मेरे,तुम्हारे एक होने को
महसूस करता नहीं कोई
तुम मेरे लिए
मैं तुम्हारे लिए जीता हूँ
क्या ये ही काफी नहीं?
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर
शायरी,मोहब्बत,प्यार,
09-02-2012
129-40-02-12
शायरी,मोहब्बत,प्यार,
09-02-2012
129-40-02-12
जी हाँ काफी ही नहीं दुरस्त है.
उत्तर देंहटाएंकिसी के पढ़ने,देखने,समझने
और महसूस करने से क्या फर्क
पड़ता है.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
वाह!!वाह!!
उत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर
सादर..
इतना काफी ही नहीं बहुत ज्यादा है. यदि प्यार करने वालों को आत्मसंतुष्टि मिलती तो इससे सुंदर बात क्या होगी.
उत्तर देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
बधाई.
अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
उत्तर देंहटाएं'काफी' में बहुत कुछ कह दिया है आपने..
उत्तर देंहटाएंक्या ये ही काफी नहीं?..............yeh line me hi sab aa gaya .sunder abhivyakti do dilo ki .
उत्तर देंहटाएंतुम मेरे लिए
उत्तर देंहटाएंमैं तुम्हारे लिए जीता हूँ
क्या ये ही काफी नहीं?
....इसके अलावा और क्या चाहिए जीने के लिये...
्काफ़ी है जी और क्या चाहिये जीने के लिये
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