धूल के
कण से कण मिला
मिलकर गुबार बना
तेज़ हवाओं ने उसे
बवंडर बना दिया
धूल का कण
अहम् अहंकार से
भर गया
अपने को शक्तिशाली
समझने लगा
संसार को अपने
अधीन करने की इच्छा में
वीभत्स रूप दिखाने लगा
जो भी सामने आया
उसे ढक दिया
अपने रंग में रंग दिया
इंद्र ने आकाश से देखा
धूल का मंतव्य समझ गया
घमंड को तोड़ने
वर्षा को भेज दिया
वर्षा ने भी रूप अपना
दिखाया
शीतल जल से
बवंडर को ठंडा किया
उसके घमंड को
शांती से दबा,धूल को
पानी में बहा दिया
दुनिया को दिखा दिया
अहम् अहंकार का
स्थान नहीं दुनिया में
ठंडक से
अग्नि भी कांपती
शांती निरंतर
विनाश से बचाती
(धूल से मेरा अभिप्राय ,निकम्मे,भ्रष्ट
एवं निम्न स्तर और सोच वाले
व्यक्तियों से है ,
जो येन केन प्रकारेण,
राजनीती की सीढियां चढ़ कर,
सत्ता के गलियारों में पहुँचते हैं
और सब कुछ अपने
अधीन करने का प्रयास करते हैं,
वर्षा के ठन्डे पानी से अभिप्राय,
सब्र से जीने वाली जनता से है ,
प्रजातंत्र में ,जनता उन्हें ठन्डे तरीके से
चुनाव के समर में उखाड़ फैंकती है)
25-11-2011
1820-85-11-11
एक बार फिर --
उत्तर देंहटाएंसामने आई
आपकी सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई आपको ||
अहम् पर शीतलता का छिडकाव ...मन को भा गया ...आभार
उत्तर देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवारीय चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ
उत्तर देंहटाएंbahut hi sunder rachna ...........bahut khoobsurat ..atti uttan .धूल के
उत्तर देंहटाएंकण से कण मिला
मिलकर गुबार बना
तेज़ हवाओं ने उसे
बवंडर बना दिया
धूल का कण
अहम् अहंकार से
भर गया
अपने को शक्तिशाली
समझने लगा
संसार को अपने
अधीन करने की इच्छा में ..wah
आपका अभिप्राय स्वतः सिद्ध है आपकी कविता से!
उत्तर देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता और उसके भाव …………शानदार प्रस्तुति।
उत्तर देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता.. बधाई स्वीकारे...
उत्तर देंहटाएंशीतल जल से
उत्तर देंहटाएंबवंडर को ठंडा किया
उसके घमंड को
शांति से दबा,धूल को
पानी में बहा दिया
दुनिया को दिखा दिया
अहम् अहंकार का
स्थान नहीं दुनिया में